श्री जसनाथ जी महाराज का जीवन परिच्य

shree dev jashnath ji


Guru Jasnath Ji Maharaj (1482-1506) (गुरु जसनाथ जी महाराज), whose real name was Jasnath, was the founder of Jasnathi Sampradaya . He was from Jyani gotra of Jats from village Katariasar in Bikaner State. His father was Hamirji of jyani Jat clan and chieftain of Katariasar. When the Rathor rulers in Bikaner increased the land taxes excessively, people became very disappointed. Jasnath Ji Maharaj appeared at this juncture to remove the problems faced by the people. He established this Sampradaya in samvat 1551 in Churu. The followers of Jasnathi Sampradaya are in large number, mainly Jats, in Sardarshahar, NagaurPanchla (Marwar), JodhpurBarmerChuruGanganagarBikaner and other places in Rajasthanand also many people from HaryanaPunjaband Madhya Pradeshbelieve in it.[1]

राजस्थान के लोकदेवताओं में सिद्घाचार्य जसनाथजी का महत्वपूर्ण स्थान है। सर्वगुणसम्पन्न महापुरूष होने से आपको विशिष्ट विशेषणों से सम्बोधित किया जाता रहा है। इनमें निकलंगदेव और निकलंग अवतार ऐसे विशेषण हैं जिनसे इनकी महानता का महात्म्य स्पष्ट झलकता है। इनके देवत्व और सिद्घत्व के गुणों का महिमा-गान राजस्थान ही नहीं, भारतभर में होता है। पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर शहर से 45 किलोमीटर दूर स्थित सोनलिया धोरों की धरती कतरियासर गांव अंतर्राष्ट्रीय ऊंट उत्सव के अग्रि नृत्य से विश्वविख्यात है जहां जसनाथजी का मुख्य धाम है, जबकि बम्बलू, लिखमादेसर,पूनरासर एवं पांचला में इनके बड़े धाम हैं। इनके अलावा कई स्थानों पर जसनाथजी की बाड़ी उपासना स्थल व अन्य अनेक स्थानों पर आसन और मन्दिर बने हुए हैं। इन्होंने जसनाथजी सम्प्रदाय की स्थापना की। जसनाथी सम्प्रदाय का विधिवत प्रवर्तन वि.संवत् 1561 में रामूजी सारण को छतीस धर्म-नियमों के पालन की प्रतीज्ञा करवाने पर हुआ। रामूजी सारण का विधिववत दीक्षा-संस्कार स्वयं सिद्घाचार्य जसनाथजी ने सम्पन्न करवाया था। सिद्घाचार्य जसनाथजी का आविर्भाव पावन पर्व काती सुदी एकादशी देवउठणी ग्यारस वार शनिवार को ब्रह्मा मुहूर्त में हुआ। ईश्वर किसी न किसी निमित्त को दृष्टिगत रखकर ही अवतार लेते हैं। सिद्घाचार्य जसनाथजी के रूप में उनके अवतार लेने का एक निमित्त यह बताया जाता है कि कतरियासर गांव के आधिपति हमीरजी जाणी ने सत्ययुगादि में तपस्या की थी। उसी के वरदान की अनुपालना में भगवान कतरियासर गांव से उत्तर दिशा में स्थित डाभला तालाब के पास बालक के रूप में प्रकट हुए। भगवान ने जसनाथजी के रूप में अवतार लेने के उपरान्त हमीरजी जाणी के घर पुत्र के रूप में निवास किया। ये बाल्यकाल से ही चमत्कारी थे। जब वे छोटे थे तो अंगारों से भरी अंगीठी में बैठ गए। माता रूपांदे ने घबराकर जब उन्हें बाहर निकाला तो वे यह देखकर दंग रह गई कि बालक के शरीर में जलने का कोई निशान तक नहीं है। मानो वे स्वयं वैश्वानर हों। अग्नि का उन पर कोई असर नहीं हुआ। धधकते अंगारों पर अग्नि नृत्य करना आज भी जसनाथी सम्प्रदाय के सिद्घों की आश्चर्यजनक क्रिया है, जो देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। जसनाथजी का दूसरा चमत्कार दो वर्ष की अवस्था में माना जाता है जब इन्होंने एक ही जगह बैठकर डेढ़ मण दूध पी लिया। एक अन्य चमत्कार के अनुसार बालक जसवंत ने नमक को मिट्टी में परिवर्तित किया। कतरियासर गांव में नमक के बोरे लेकर आए व्यापारियों ने विनोद में बालक जसवंत से कहा देखो जसवन्त इन बोरों में मिट्टी भरी है। यदि चखने की इच्छा हो तो एक डली तुम्हें दें। तब इन्होंने प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण करते हुए कहा मिट्टी तो बड़ी स्वादिष्ट और मीठी है। इस प्रकार सारा नमक मिट्टी में परिवर्तित हो गया। इस प्रकार के अनेक चमत्कार जसनाथजी के बाल्य जीवन से जुडे़ हुए हैं। इनके चमत्कारों और तपोबल की ख्याति सुनकर ही इनके.     समकालीन विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरू जंभेश्वर महाराजबीकानेर राज्य के लूणकरण और घड़सीजी, दिल्ली का शाह सिकंदर लोदी इत्यादि इनसे मिलने कतरियासर धाम आए थे। सिद्घाचार्य जसनाथजी छोटेथे तब उनकी सगाई हरियाणाराज्य के चूड़ीखेडा़ गांव के निवासी नेपालजी बेनीवाल की कन्या काळलदेजी के साथ हुई। काळलदेजी सती और भगवती का अवतार मानी जाती है

कैलाश सिद nathusar

Comments

  1. जय गुरु जसनाथ जी की

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  2. om nmo aadesh jay shree jasnath ji maharaj

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  3. Jai jagannath dada ki sari dadi ki

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  4. जय हो सिध्दाचार्य गुरु जसनाथ जी महाराज की जय हो सती दादी काळलदेजी की जय हो पोलिया दादा जी की जय हो श्री श्री महायोगी गुरू गोरखनाथ जी महाराज की , ओम नमो आदेश

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